
Chandrayaan Moon Mission | भारत में चंद्रमा मिशन
- यह मिशन ISRO के पहले चंद्रयान-1 ऑर्बिटर के बाद का ही मिशन था, जिसे अक्टूबर 2008 में लॉन्च किया गया था और 10 महीने तक संचालित किया गया था।
- चंद्रयान-2 में भविष्य के ग्रहीय मिशनों के लिए उन्नत उपकरण और नई प्रौद्योगिकियाँ शामिल हैं।
- द प्लैनेटरी सोसाइटी ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि ऑर्बिटर को 7 साल तक काम करने के लिए डिजाइन किया गया था, जबकि लैंडर और रोवर को सफलतापूर्वक उतरने पर एक चंद्र दिवस तक काम करने की उम्मीद थी।
- चंद्रयान-2 मिशन के उद्देश्यों में चंद्रयान-1 मिशन के दौरान एकत्र किए गए आंकड़ों के आधार पर चंद्रमा के बारे में और अधिक जानकारी एकत्र करना शामिल है। ऑर्बिटर का लक्ष्य चंद्रमा की स्थलाकृति का मानचित्रण करना (map the Moon’s topography), सतह के खनिज विज्ञान और मौलिक प्रचुरता का अध्ययन करना, चंद्र बाह्यमंडल की जांच करना और हाइड्रॉक्सिल और जल बर्फ के संकेतों की खोज करना है।
- भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के संस्थापक विक्रम साराभाई के सम्मान में लैंडर का नाम विक्रम रखा गया था। इसका इच्छित लैंडिंग स्थल चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास, लगभग 70 डिग्री दक्षिण अक्षांश पर था।
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3.चंद्रयान-3
- चंद्रयान-3 अंतरिक्ष यान ISRO द्वारा नियोजित तीसरा चंद्र अन्वेषण मिशन (lunar exploration mission) है। यह चंद्रयान-2 मिशन की निरंतरता (continuation of the Chandrayaan-2 ) के रूप में कार्य करता है और इसका उद्देश्य चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंडिंग और घूमने की पूरी क्षमता का प्रदर्शन करना है।
- चंद्रयान -3 में एक लैंडर और रोवर कॉन्फिगरेशन शामिल है और इसे श्रीहरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC) SHAR से LVM3 (लॉन्च व्हीकल मार्क 3) द्वारा लॉन्च कर दिया गया है।
- एक रिपोर्ट के अनुसार, प्रोपल्शन मॉड्यूल लैंडर और रोवर कॉन्फिगरेशन को लगभग 100 किमी की चंद्र कक्षा में पहुंचाएगा।
प्रोपल्शन मॉड्यूल में स्पेक्ट्रो-पोलरिमेट्री (Spectro-polarimetry) लगा है, lunar orbit से पृथ्वी के वर्णक्रमीय और पोलारिमेट्रिक माप (spectral and polarimetric measurements) का संचालन करने के लिए डिजाइन किया गया है।

यह पेलोड चंद्रमा पर एक अद्वितीय सुविधाजनक बिंदु से पृथ्वी की विशेषताओं और रहने की क्षमता के बारे में मूल्यवान डेटा प्रदान करेगा।
चंद्रयान-3 में चंद्रयान-2 की तरह ऑर्बिटर के बिना एक रोवर और लैंडर शामिल है। मिशन का लक्ष्य चंद्रमा की सतह का पता लगाना है। खास कर उन क्षेत्रों का पता लगाना जहां अरबों वर्षों से सूर्य का प्रकाश नहीं पहुंच पाया है।
वैज्ञानिकों और खगोलविदों (Scientists and astronomers) को इन अंधेरे क्षेत्रों में बर्फ और मूल्यवान खनिज संसाधनों की उपस्थिति पर संदेह है।
रिपोर्ट के अनुसार, एक्सप्लोरेशन केवल सतह तक ही सीमित नहीं होगा, बल्कि उप-सतह और बाह्यमंडल (sub-surface and exosphere) का भी अध्ययन किया जाएगा।
रोवर चंद्रयान-2 से उधार लिए गए ऑर्बिटर का उपयोग करके पृथ्वी के साथ संचार करेगा। सतह का विश्लेषण चंद्र कक्षा से 100 किमी की दूरी से छवियों को कैप्चर करके किया जाएगा।
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